Skip to main content

रोमियों की पत्री 2 Hindi Bible Class - Pr.Valson Samuel

  रोमियों की पत्री  2

Malayalam Bible Class - Pr.Valson Samuel


विश्वास द्वारा दोषमुक्ति  के विषय पर रोमियों की पुस्तक और कुछ अन्य अंशों से विचार किया जा सकता है।   रोमियों की  पत्री के तीसरे अध्याय में तेईसवाँ पद।  इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। और फिर जैसा कि हम पढ़ते हैं   उनकी कृपा से,   ईश्वर की कृपा से   चौबीसवां पध ।   परन्तु उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह में है, स्वतंत्र रूप से धर्मी ठहराया जाता है। ये वाक्य के वे भाग हैं जिन्हें संक्षेप में अंदर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जिनका आप उपयोग कर सकते हैं।   अर्थात् उनकी कृपा से,  परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।  हम सभी प्रभु यीशु मसीह के द्वारा छुटकारे को जानते हैं।   वह पृथ्वी पर प्रकट हुआ और हमें जीवन का एक मार्ग दिखाया जिसमें वह हमारे पापों के लिए क्रूस पर पापबलि बन जाता है।   पच्चीसवाँ पध जैसा कि हम निम्नलिखित पधों  को पढ़ते हैं की   उनके लिए जो विश्वास करते हैं, अर्थात्, मसीह यीशु में छुटकारे   उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी धामिर्कता प्रगट करे।

उसने पिता के सामने हमारे पापों का प्रायश्चित करने के लिए कलवारी के क्रूस पर अपना लहू बहाया।  प्रायश्चित करना   propitiation अंग्रेजी में यही शब्द है   यानी पाप की कीमत।  इसके लिए किसी को फिरौती के रूप में बलिदान देना पड़ता है।   उस छुड़ौती पर, कलवारी पर हमारे प्रभु यीशु मसीह की बलि दी जाती है।   प्रभु यीशु पिता के सामने हमारे पापों की छुड़ौती तो वह महान छुटकारे, या वह छुटकारे, पापों की क्षमा, प्रभु यीशु के लहू के द्वारा पापों की क्षमा, उस महान दिव्य प्रतिज्ञा की पूर्ति है कि उस अनुग्रह से हमें परमेश्वर के लहू के द्वारा विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया जाता है।   और फिर जैसा कि हम नीचे पढ़ते हैं  उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी धामिर्कता प्रगट करे।

जो कोई अपने पिछले पापों के लिए दंडित किए बिना विश्वास करता है उसे क्षमा कर दिया जाता है   अर्थात्, उस पाप से पिछले पापों से ,वही शब्द  बहुत महत्वपूर्ण है ताकि वह उस न्याय में न पड़ जाए।   क्‍योंकि अब तक हम ने जो पाप किए हैं, वे विश्‍वास के धर्मी ठहराए जाने के द्वारा ग्रहण किए जाते हैं।   और फिर छब्बीस पद में   वरन इसी समय उस की धामिर्कता प्रगट हो; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो। तब वह किसी मनुष्य के कर्म से नहीं होता।   एक है परमेस्वर  की कृपा।   दो मसीह यीशु में छुटकारे।   उस छुटकारे ने कलवारी के द्वारा हमारे लिए इसे संभव बनाया।   तीन मुफ्त में उचित हैं।   यह हमारे किसी कार्य के कारण नहीं है।   और फिर विश्वास, अर्थात् क्रूस पर छुटकारे,   खून से प्रायश्चित।   जो लोग इसे मानते हैं, उन्हें अपने खून के लिए "रक्त", "प्रायश्चित" शब्द भी लिखना होगा।   क्योंकि परमेश्वर, अपने धैर्य में, पिछले पापों का दंड नहीं देता है, पिछले पापों की क्षमा।   तब परमेश्वर की कृपा से, मसीह के द्वारा छुटकारे मुक्त है   तब परमेश्वर की कृपा से, मसीह के द्वारा छुटकारे मुक्त है   पिछले पाप।   जैसा कि हम रोमियों अध्याय 10, पध  6 से 6 पढ़ते हैं, हम विश्वास की धार्मिकता को देखते हैं।    परन्तु जो धामिर्कता विश्वास से है, वह यों कहती है, कि तू अपने मन में यह न कहना कि स्वर्ग पर कौन चढ़ेगा? अर्थात मसीह को उतार लाने के लिये!  या गहिराव में कौन उतरेगा? अर्थात मसीह को मरे हुओं में से जिलाकर ऊपर लाने के लिये!  परन्तु वह क्या कहती है? यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं। तब विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने से पहले व्यक्ति को पहले परमेश्वर का वचन सुनना चाहिए।   जिस शब्द पर यह आधारित है, यीशु ने शिष्यों को पश्चाताप और क्षमा का उपदेश देने की आज्ञा दी।   जब उस शब्द का प्रचार किया जाता है, तो वह शब्द परमेश्वर का पवित्र आत्मा होता है जो उसके हृदय में बस जाता है।   अपराधबोध वहीं से आता है।    पाप के प्रति जागरूकता और धार्मिकता के प्रति जागरूकता ये सभी कार्य हैं जो पवित्र आत्मा की शुरुआत हैं।   एक में    और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।  और फिर वहाँ 

परन्तु वह क्या कहती है? यह, कि वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं।  रोमियों अध्याय 10 इसका नौवां पद है  कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। परमेश्वर ने हमें हमारे पिछले पापों के लिए दण्डित नहीं छोड़ा। हमें क्षमा करें और यही मोक्ष की ओर पहला कदम है।   रोमियों अध्याय 10 इसका दसवाँ पद है । क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है। स्वीकारोक्ति बापतिस्मा स्थान पर है  पाप को स्वीकार करने और यीशु को उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में स्वीकार करने की घटना बपतिस्मा के पहले  में होती है।  मत्ती  के सुसमाचार के तीसरे अध्याय के छठे पध  को पढ़ते समय   उसके पास जाओ।    और अपने अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया। यहाँ वे मन फिराव के बपतिस्मे के बारे में लिखते हुए यूहन्ना के पास गए और अपने पापों को मान लिया और यरदन में उससे बपतिस्मा लिया।   फिर उस बपतिस्मे में हम अपने पापों को अंगीकार करते हैं और अपने मुंह से अंगीकार करते हैं कि यीशु ही प्रभु है।   तथ्य यह है कि हमारे पिछले पापों को दोहराया नहीं गया है क्योंकि हमने पश्चाताप किया और बपतिस्मा लिया।   नए नियम के बपतिस्मा में हम पहले अपने पापों को स्वीकार करते हैं और फिर अपने मुंह से यीशु को उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में स्वीकार करते हैं।  हम यीशु मसीह में शामिल होने के लिए बपतिस्मा लेते हैं।   नए नियम के बपतिस्मा में   पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। फिर उस नाम से बपतिस्मा लेना यीशु मसीह में शामिल होना है।   उससे पहले पछताओ,   इससे पहले, पश्चाताप पापों के स्वीकारोक्ति की शुरुआत है   जब परमेश्वर का सेवक प्रचार करता है तो परमेश्वर का वचन इस संदेश को किसी के ह्रदय  तक पहुंचाता है।   यही मसीह यीशु में छुटकारे का संदेश है। कहने की जरूरत नहीं है।   बस शब्द को जाने दो।यह परमेश्वर का आत्मा है जो यह वचन उन लोगों को देता है जिन्हें छुड़ाया जाना है।   यानी ह्रदय  से विश्वास करना  कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। दूसरा भाग है पूरे मन से विश्वास करना कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा।   पध चौबीस और पच्चीस रोमियों अध्याय चार में पढ़े जा सकते हैं।   और हमारे ही अपराधों के लिए  मार डाला जाएगा ।   फिर जब यीशु क्रूस पर पाप चढ़ाने के लिए मरा, तो यह हमारे पापों के लिए था।   क्योंकि हम जो उस पर विश्वास करते हैं, जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, जिन्हें हमारे धर्मी ठहराने के लिए जिलाया गया है, उनकी भी जवाबदेही है।   फिर वहाँ यह हमें मृत्यु के बारे में दिखाता है।   साथ ही ऊंचाई भी। यह दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।   यह मृत्यु के माध्यम से है कि वह हमारे अपराधों के लिए अपनी मृत्यु देता है, लेकिन प्रभु यीशु, जो हमारे दोषमुक्ति  के लिए उठे।   तब इन दो भागों पर विश्वास करना होगा   प्रभु यीशु मसीह मेरे पापों का प्रायश्चित बलिदान है, और वह प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान में मेरे विश्वास के द्वारा मुझे धर्मी ठहराता है।   फिर इसे विश्वास में बदलना चाहिए।   यहाँ मृत्यु और पुनरुत्थान दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं।   स्नानागार में बपतिस्मा के साथ ऐसा ही होता है।   रोमियों की पत्री का अध्याय 6 और उसका तीसरा पद क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया यही यीशु मसीह का नाम है।   जब उस नाम से हमने बपतिस्मा लिया  क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया तब यहोवा हमारे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ गया।   वहाँ हमें बपतिस्मा दिया जाता है ताकि हम उसमें हिस्सा ले सकें।   तब हम विश्वास में बपतिस्मा लेते हैं।  लेकिन विश्वास के प्रति इस तरह की प्रतिबद्धता के बाद, विश्वास के जीवन के माध्यम से यीशु की मृत्यु हमारे जीवन में होनी चाहिए। और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है॥ तब संसार हम में उस विश्वास के जीवन में, अर्थात् आत्मिक जीवन में, आत्मा और वचन की आज्ञाकारिता के जीवन में क्रूस पर चढ़ाया जाता है।   शरीर हम में सूली पर चढ़ा हुआ है, यानी मैं अपनी मर्जी से दौड़ने के लिए सूली पर चढ़ा हुआ हूं।   यह किसी भी सहयोगी के लिए, किसी भी कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए।   क्योंकि विश्वास को हमें अपने जीवन में जीवन के उस स्तर पर लाना है।   तब क्या तुम नहीं जानते कि उसने अपनी मृत्यु में बपतिस्मा लिया था?   सो हम उसके साथ बपतिस्मे में गाड़े गए, और उसकी मृत्यु में सहभागी हुए।   सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें। तब हमें उस बपतिस्मे का सन्देश भी प्राप्त हुआ होगा।सिर्फ सलाह देना काफी नहीं है, हमें इसे समझना होगा,जब हम बपतिस्मा लेते हैं, तो यीशु, हमारे पापों के लिए पापबलि, प्रभु के साथ दफनाया जाता है।  जीवन के नवीनीकरण में चलने के लिए एक नया व्यक्ति बपतिस्मा लेकर बाहर आता है।   तब हमें उस एक सत्य को जानना होगा।   जिसके आधार पर चौथे अध्याय में चौबीस और पच्चीस पध  पढ़े जाते हैं  वरन हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्थात हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया।  वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया॥ तब बपतिस्मा महत्वपूर्ण है।  जब हम दसवें अध्याय पर वापस आते हैं   हम विश्वास के इस वचन को हृदय से मुंह के द्वारा अंगीकार करते हैं, वे अपने मुंह से अंगीकार करते हैं कि यीशु ही प्रभु हैं।  मसीह को मुझ में वास करना चाहिए, अब मुझमें नहीं।   तो न केवल वह ज्ञान है जिसे हम जानते हैं,   पिछले पापों से छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका बपतिस्मा नहीं है   तब हमें यीशु को प्रभु के रूप में स्वीकार करना चाहिए।   इस प्रकार पवित्र आत्मा उन्हें दिया जाता है जो वास्तव में इसे प्राप्त करते हैं।  यीशु हमारे जीवन में प्रभु कैसे बनते हैं ?   यीशु हमारे जीवन में प्रभु बन जाते हैं जब पवित्र आत्मा हम पर आता है और हम में वास करता है और उस आत्मा की आज्ञाकारिता में वचन के अनुसार रहता है।   वास्तव में बपतिस्मा में हम इसके लिए स्वयं को समर्पित कर रहे हैं।   पहले क्षेत्र में हमारे पापों में से क्षमा के लिए, अर्थात् पिछले पापों की क्षमा के लिए   

दूसरा क्षेत्र हमारे उद्धार का क्षेत्र है।   हम अपने मुंह से यीशु को प्रभु के रूप में स्वीकार करते हैं, यह विश्वास के जीवन के लिए है।   तब हम बिना कर्म के विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरते हैं।   वह जो उस विश्वास से धर्मी है, अवश्य ही विश्वास से जीवित रहेगा।   प्रभु हमें विश्वास से जीने के लिए सही ठहराते हैं।   तब हमारे द्वारा किए गए सभी पाप क्षमा हो जाते हैं।   लेकिन हमें यीशु को प्रभु के रूप में भी स्वीकार करना चाहिए जब हम विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं।   एक ओर, यीशु हमारा उद्धारकर्ता है, पाप से हमारा उद्धारकर्ता है।   दूसरी ओर, यीशु हमारे जीवन में प्रभु हैं ताकि हम जीवन को पूरी तरह जी सकें।  पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।  तब पवित्र आत्मा हमें दिया जाता है, कि सत्य का आत्मा हम में वास करे और उस पर अधिकार कर ले।   इसलिए जब हम कहते हैं कि यीशु ही प्रभु है, यीशु उसके भीतर प्रभु है जो आत्मा के प्रभुत्व के अधीन है और उसके अनुसार जीवन जीता है।   फिर   यीशु परमेस्वर हैं,यह हमें विश्वास के द्वारा न्यायोचित ठहराता है।   यीशु प्रभु हैं, एक ऐसा जीवन जो विश्वास और आत्मा के प्रभुत्व से जीता है।   मेरा धर्मी विश्वास से जीवित रहेगा   दूसरा भाग पूरा न हो तो जीवन अधूरा है।   मुझे नहीं पता कि उनका क्या होगा। पर वह जीवन अधूरा है।   यह वह नहीं है जो परमेश्वर हमसे करना चाहता है।   परमेस्वर  अपूर्ण जोड़ने के लिए नहीं आते हैं।   प्रभु हमें पूर्ण करने के लिए लौटते हैं और उस पूर्णता में हमारी महिमा करते हैं।  तब हमारे पास वह जागरूकता होनी चाहिए।   परमेस्वर  ने हमें वह सब कुछ दिया है जिसकी हमें जरूरत है   तो हमें विश्वास करना होगा।   प्रभु ने हमें वह सब कुछ दिया है जो हमें परिपूर्ण होने के लिए चाहिए।   जब हम इसे वैसे ही जीते हैं जैसे हमें जीना चाहिए, हम इसकी वास्तविकता तक पहुंचने में सक्षम होंगे।  क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है। क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा। फिर विश्वास से दोषमुक्ति , विश्वास से जीवन।   इनमें से कोई भी हमारा काम नहीं है।   इसे समझना चाहिए।   दोनों विश्वास से हैं।   जब कोई विश्‍वास से जीवित रहेगा तो किसके काम प्रगट होंगे ?  परमेश्वर के कार्य हम में प्रकट होने लगेंगे।   कितने लोगों ने इसे समझा? कितने लोगों ने इसे समझा?   सो विश्वास से धर्मी ठहरना और विश्वास से जीवन हमारे काम नहीं हैं।  प्रभु यीशु पर विश्वास करने वालों के पिछले पापों को क्षमा करते हैं   विश्वास से न्यायोचित।   और देखो, यह आकाशवाणी हुई, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं॥ स्वर्ग में आवाज उठ रही है।   लेकिन जब हम यीशु को प्रभु के रूप में स्वीकार करते हैं, तो यह एक वास्तविकता बन जाना चाहिए।   हमें आत्मा दिया गया है ताकि हम आत्मा की आज्ञाकारिता में जी सकें।   जब हम आत्मा की आज्ञाकारिता में जीना शुरू करते हैं, तो आत्मा हमारे भीतर वास करता है और जो कार्य परमेश्वर ने निर्धारित किए हैं वे हमारे जीवन के माध्यम से सामने आते हैं।   यह परमेश्वर का कार्य है। यह पूर्णता का जीवन है।   लेकिन उस तक पहुंचने के लिए हमें हर दिन एक यात्रा करनी होगी, एक आध्यात्मिक यात्रा करनी होगी।   इसे कदम दर कदम इस स्तर तक बढ़ना है।   ऐसे समय में जब हम आत्मा के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता का जीवन जीते हैं, जैसे यीशु ने पृथ्वी पर अपने द्वारा पिता के कार्य को प्रकट किया था, उसी प्रकार पिता हम में से प्रत्येक में अपने भाइयों और बहनों के रूप में निवास करेगा, और परमेश्वर के कार्य हम में रहकर हमारे जीवन से बाहर आएगा ।   कितने लोग इस पर विश्वास कर सकते हैं?   यही सच्चा मसीही जीवन या आत्मिक जीवन है।   जब मैं तुम्हें ये सच बताता हूं तो तुम्हें इसे आत्मा में ग्रहण करना चाहिए और इसके लिए जीवन जीना चाहिए।   रोमियों की पत्री के तीसरे अध्याय का इक्कीसवाँ पद पढ़ें।   पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।  जब यह कहा जाता है कि कोई कानून नहीं है   कानून के अधिनियम पुराने नियम में बहुत सारे अनुष्ठान हैं।   फसह और अखमीरी रोटी के पर्व में बहुत से पर्व और रीति-रिवाज थे।   फिर वे उपवास करते हैं, नासिक घतना  इस प्रकार है बहुत  परन्तु हमारे विश्वास से धर्मी ठहराना उस व्यवस्था के कामों से नहीं, विश्वास से है।   मसीह हमारे लिए पहले ही बलिदान किया जा चुका है।   जब हम उस पर अपने विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं, जब हमारे पिछले पापों को क्षमा कर दिया जाता है, तो अगला कदम हमारा जीवन होता है।   यहोवा के हाथ में दे दो, परमेश्वर के हाथ में दे दो   पवित्र आत्मा हमें तब दिया जाता है जब हम समर्पण करते हैं और उसकी संप्रभुता के लिए प्रार्थना करते हैं।   विश्वास का जीवन एक वास्तविकता बन जाता है जब आत्मा हम में वास करती है और हम आत्मा के प्रभुत्व में आ जाते हैं।   लोगों का एक बड़ा समूह इसकी विफलता के बारे में नहीं जानता है।  वे जाकर बपतिस्मा लेंगे और फिर जीवित रहेंगे।   जैसा कि मुझे आमतौर पर याद है, मैं जीवन में बहुत सारे अनुष्ठान देखता हूं।   जब आप ऐसा करेंगे तो आपको खुशी मिलेगी, लेकिन वह आध्यात्मिक जीवन नहीं है।   सच्चा आध्यात्मिक जीवन आत्मा के नेतृत्व में, आत्मा के नेतृत्व वाला जीवन है।   आइए हम इफिसियों के एक और पद को पढ़ें। इसका दूसरा अध्याय आठवां पध  है   क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।  और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। वहां बहुत साफ-साफ लिखा है।   अनुग्रह से तुम्हें विश्वास है, या उस छुटकारे में विश्वास है जो मसीह में है: याद रखो कि लहू है।   उस प्रायश्चित को याद करो।   विश्वास से बचाया जाना परमेश्वर की ओर से उपहार है, न तो आप का, न ही कामों का, ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति घमण्ड करे। आइए अब दसवां पध  पढ़ें क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया॥ तब हमें याद रखना चाहिए कि हमें उसके हाथों से निर्मित होना चाहिए।   आत्मा हमें भले काम के लिए दी गई है।   तो यह सिखाना है। यीशु कैसे नियंत्रण में है ?   कैसे यीशु हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में कदम दर कदम हमारे जीवन का प्रभु हो सकता है ?   यह सत्य का आत्मा है, पवित्र आत्मा, जो हमारे भीतर वास करता है।   हमें इसे जमा करना होगा।   हमारे प्रार्थना जीवन में, हमारे प्रस्थान और आगमन में, और हमारे सभी समुदायों में यही लक्ष्य होना चाहिए।   परमेस्वर  की करतूत,   आत्मा द्वारा एक कार्य। उस शिल्प का अर्थ है कि हम जीवन के उस आदर्श पर आ जाते हैं जो प्रभु यीशु ने हमें दिखाया था।   हस्तशिल्प के रूप में अच्छे कामों के लिए। या जो कुछ हमारे जीवन में धार्मिकता के लिए आता है, अर्थात् हमारी बोली, हमारी सुनवाई, हमारी दृष्टि,   जब क्रियाओं की बात आती है, तो ये सभी क्रियाएँ होती हैं   इसके अलावा, हमारा पारिवारिक जीवन, कलीसिया का जीवन, और सभी अच्छी चीजें जो तब होती हैं जब हम बाजार में होते हैं।   आत्मा के नेतृत्व वाले जीवन में, जिसमें परमेश्वर का आत्मा वास करता है, सभी अच्छे कार्य होते हैं।   हमें इस पर विश्वास करना चाहिए और इसे इसकी पूर्णता में स्वीकार करना चाहिए।अपनी पूर्णता में, जब मैं एक शब्द कहता हूं, तो वह परमेश्वर के नाम की महिमा के लिए होना चाहिए।   इससे बहुतों को शांति मिलेगी।   उसी तरह, जिन क्षेत्रों के बारे में हमने पहले सोचा है, उन्हें हमारी आत्मा और आंतरिक मानव शक्ति द्वारा मजबूत किया जाना चाहिए।   इसलिए हमें हर दिन बड़ी आशा और विश्वास के साथ जीना चाहिए।   जब मन की बात आती है, तो वह वहीं होना चाहिए जैसा ईश्वर चाहता है।  निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। प्रेरित यह सब सोचने के लिए कहता है।  मसीह के मन को समझा जा सकता है जैसा कि हम फिलिप्पियों की पुस्तक में पढ़ते हैं।   मसीह की छवि आप में हो। जब मन उस स्तर तक बढ़ता है तो हम गुलाम होने के स्तर पर आ जाते हैं।   खुद दर्द सह है,   और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। फिर यह हमेशा प्रार्थना होनी चाहिए कि हम ऐसे मन में विकसित हों।जब हम ईश्वर की उपस्थिति में हों, तो हमें उसके लिए ध्यान करना चाहिए।   तो यह तब होता है जब हम स्वयं को प्रस्तुत करते हैं कि परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा हम में यह कार्य करता है।   हमें एक संपूर्ण इंसान बनाने के लिए हममें वह काम किया जाता है अर्थात् क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया॥ जैसा कि मैं हमेशा कहता हूं, कुछ भी नया आविष्कार न करें   जब हम आत्मा के नेतृत्व में होते हैं तो हम एक आशीष बन जाते हैं।  हमारे जाने बिना हमारे अच्छे कर्म,   परमेश्वर ने जो कार्य ठहराया है वह हमारे जीवन से निकलेगा।इसी तरह परमेश्वर के नाम की महिमा हममें होनी चाहिए ताकि वह दूसरों पर प्रकाश डाल सके।   फिर विश्वास से उद्धार या विश्वास से क्षमा या विश्वास से धर्मी ठहराना और विश्वास से जीवन।   तब हमें उन दो लक्षणों के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए। अब्राहम के जीवन में  पवित्र शास्त्र क्या कहता है यह कि इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया। हम पहले उस औचित्य को उत्पत्ति अध्याय पंद्रह में देखते हैं।   उससे पहले के चौदहवें अध्याय में   सदोम का राजा धन लेकर आता है, और शालेम का राजा रोटी और दाखमधु लेकर आता है।   लेकिन एक विकल्प था स्वतंत्र इच्छा के केंद्र में, अब्राहम ने महसूस किया कि मसीह का क्रूस सदोम के राजा का खजाना नहीं था।   जब परमेश्वर का महायाजक रोटी और दाखमधु लाता है, तो वह उसे प्राप्त करता है।   उत्पत्ति की पुस्तक के पन्द्रहवें अध्याय का छठा पद   उसने यहोवा पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना। यह क्रूस के दर्शन में है कि हम सबसे पहले विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराते हैं।   यह एक शुरुआत है, लेकिन वे यहां यात्रा कर रहे हैं।   कई अध्यायों के बाद इसके भीतर कई घटनाएँ घटती हैं। मांस के अनुसार एक बीज है,   वादा के अनुसार एक बीज पैदा होता है।   परमेश्वर मांस का बीज नहीं चाहता।   परमेस्वर  नहीं चाहते कि ऐसा कुछ हो।   वह जो वादा किया गया है उसका हकदार है।   इसलिए हम इस बारे में विचार करने जा रहे हैं कि अब्राहम और सारा को यह वादा किया गया वंश कैसे प्राप्त होगा   यही वह है जो प्रेरित मुख्य रूप से रोमियों की पत्र के चौथे अध्याय के माध्यम से सिखाने का इरादा रखता है।   यह तब पूरा होता है जब उत्पत्ति की पुस्तक 22 तक पहुँचती है।   यानी अपने जीवन में विश्वास के द्वारा दोषमुक्ति  की पूर्ति   यानी वह अपने लिए सबसे कीमती चीज का त्याग करता है।   यानी आज्ञाकारिता।   उत्पत्ति की पुस्तक के बाईसवें अध्याय में   उसने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उससे कुछ कर: क्योंकि तू ने जो मुझ से अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मैं अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है।

फिर जैसा कि हम नीचे पढ़ते हैं, मैं आपको समृद्धि का आशीर्वाद दूंगा।   इसका सोलहवां पध यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन अपने एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा;  इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: अठारहवें पध में   और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है। आप सभी को वो पध याद होगा हम इससे संबंधित कुछ पधों  को नीचे  खंडों में पढ़ना चाहेंगे।   और तेरे वंश के द्वारा पृय्वी की सारी जातियां आशीष पाएंगी, क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।   यानी आज्ञाकारिता   फिर, जैसा कि मैंने चौथे अध्याय में उसे याद दिलाया, वह मांस के अनुसार एक बीज पैदा करता है।   यह न तो विश्वास है और न ही वादा।   यह वादा किया हुआ बीज नहीं है।   उस ने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि तेरा वंश ऐसा होगा वह बहुत सी जातियों का पिता हो। उन्नीसवीं पध    और वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई की सी दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।  और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की। और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है।  इस कारण, यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।  यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ परमेश्वर की धार्मिकता उसके जीवन के द्वारा पूरी होती है।   लेकिन यहां एक मूल मुद्दा है।   अर्थात्, इश्माएल का जन्म इब्राहीम और सारा से हुआ था जब वे निर्जीव थे, लेकिन तब इब्राहीम प्रजनन करने में सक्षम था।   अक्सर हम देह में विश्वास के इस जीवन का नेतृत्व करने का प्रयास करते हैं।   एक ने बपतिस्मा लिया और फिर तुम जीवित हो।   आज के लिए प्रयास करने के लिए एक भी विषय नहीं है।  लेकिन पिन्तेकुस्त के शुरुआती दिनों में यह संघर्ष कर रहा था और अभी भी देखा जा सकता है और कई लोग संघर्ष कर रहे होंगे   वे क्यों कोशिश कर रहे हैं?   जीने के लिए, इस जीवन को लाने के लिए, या यह वादा प्राप्त करने के लिए, यह एक वादा है। विश्वास का जीवन एक वादा है,   पवित्र जीवन एक वादा है।   जब परमेश्वर की प्रतिज्ञा हमें मसीह के द्वारा दी जाती है, तो हम अपने स्वयं के प्रयासों से इसे प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।   परन्तु यदि हम ऐसा करें, तो इश्माएल के वंशज निकल आएंगे।   अर्थात्, हम आदम और हव्वा के साथ इस जीवन को जीने का प्रयास करते हैं।आदमिक आदमी तभी मर सकता है जब वह पूरी तरह से स्वतंत्र हो। हम अपने विश्वास के बीज हैं,   जब कोई व्यक्ति नया जन्म लेता है, तो उसकी आदमिक संतान होती है, यानी आदम।   आदम हम में से पहला पैदा हुआ था।   फिर समस्या यह है कि विश्वास का बीज पैदा होने पर पैदा नहीं होता है।   आदम बड़ा होकर मरेगा,   अर्थात् बाहरी मनुष्य को नष्ट होना है।   जितना अधिक ह्रास होता है, उतना ही हमारे भीतर का मनुष्य बढ़ता जाता है।   तब हमें वह देना चाहिए जो आंतरिक मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है।   बाहरी व्यक्ति की वासना, इच्छा और इच्छा कुछ भी नहीं है।   लेकिन मरने में कुछ वक्त लगेगा। वह भी आत्मा को हमें सिखाना चाहिए   हमें आत्मा की अधीनता में आना चाहिए।   यदि आज्ञाकारी लोग यह नहीं सीखते, तो आदम और हव्वा जीवित रहेंगे   यदि कोई अपनी पूर्ण स्वतंत्रता के लिए प्रयास करता है, तो आदम इस जीवन को जीने का प्रयास कर रहा होगा।इस प्रकार हम इस वादे की पूर्ति के लिए नहीं आ सकते हैं।   तो वह मर जाएगा।   परमेश्वर इस प्रतिज्ञा के प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रहा था।  इब्राहीम दूसरे बच्चे को जन्म नहीं दे सकता था।   हमें समझना चाहिए कि उसे यह वादा पूरे विश्वास के साथ प्राप्त करना है   जैसा कि हम यहां पढ़ते हैं वह इस आशा का खंडन करता है कि यह दुनिया की आशा है। हम जानते हैं   हमें उस उम्र पर संदेह नहीं करना चाहिए जिस उम्र में हमें बच्चे पैदा करने चाहिए। हम आशा करते हैं कि हमारे बच्चे होंगे   लेकिन उस उम्र के बाद क्या? आशा संभव नहीं है यदि यह मानवीय आशा है इसलिए हम देखते हैं कि आशा के विरुद्ध मानी जाती है।   दूसरी आशा परमेश्वर की प्रतिज्ञा में आशा है।   क्या तुम समझ रहे हो?   पहली आशा यह है कि यह मानवीय है।   यह शरीर में एक आशा है।यह बहुत आसान है।इश्माएल होगा। लेकिन दूसरी आशा यह है कि यह वादे में एक आशा है।   यही वह आशा है जो हम वचन से प्राप्त करते हैं।   क्या ऐसे जीना संभव है?   हम सभी आज सामान्य रूप से कहते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं रह सकता है। जब हम वहां जाएंगे तो यह सब सीधा होगा, लेकिन इब्राहीम का वह विश्वास केवल हमारे पास आ सकता है।   इसके चेहरे पर, कोई उम्मीद नहीं है   लेकिन परमेस्वर  ने वादा किया था।   मुझे मसीह में सिद्ध बनाने की प्रतिज्ञा है।   मुझे प्रतिज्ञा है कि वह आत्मा के द्वारा मेरी अगुवाई करेगा।   मुझे प्रतिज्ञा है कि परमेश्वर का वचन मुझ में जीवित रहेगा। मेरा यह भी वादा है कि यह बहुतायत में दिया जाएगा।दुनिया को जीतने का वादा है, शरीर को सूली पर चढ़ाने का वादा है।   ये सब हमारे वादे हैं।   एक वादा है कि पर्दा हटा दिया गया है।   वह चेहरा महिमामंडित प्रभु यीशु को दर्पण की तरह प्रतिबिम्बित कर सकता है। मैं वादा करता हूँ कि मैं वचन के माध्यम से यीशु को देख सकता हूँ।   तब प्रतिज्ञा की जाती है कि महिमा पर महिमा प्रभु के वरदान से मिलेगी, जो आत्मा है।मेरे पास अनुग्रह और धार्मिकता की प्रचुरता का वादा है।   मुझे प्रतिज्ञा है कि यदि मैं उस बहुतायत को प्राप्त कर लूंगा, तो मैं अपना अधिकांश जीवन उसी के कारण, अर्थात् मसीह के कारण जीऊंगा।   हम ऐसे बहुत से वादों के बारे में सोचने वाले हैं।   उस समय मत भूलना।   जब इब्राहीम सारा को देखता है तो यह असंभव है।   क्योंकि सारा का गर्भाशय बेजान हो गया था।   सारा ने जब इब्राहीम की ओर देखा, तो सौ वर्षीया ने अपना शरीर खो दिया था।   यह दोनों ही आपको बताएंगे कि यह कैसे संभव है।तो मानवीय दृष्टि से यह असंभव है।   लेकिन परमेस्वर  ने एक वादा किया है।   बेबी तुम्हारे पास एक वादा है। तुम्हारे पास एक वादा किया हुआ वंश है।   एक मायने में, वह वादा उनकी निष्क्रियता से ही पैदा हो सकता है।   कितने लोगों ने इसे समझा?   लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।   हर कोई इस अवधि के दौरान शुरू भी नहीं करता है।   उनका कहना है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है।   आराम करो, खाओ, पीओ, और आनन्द करो, यह सोचकर कि तुम विश्वास से धर्मी हो गए हो और प्रभु ने तुम सभी को ढक लिया है, और तुम बहुत लंबे समय तक जीवित रहोगे।   बाइबल ऐसा नहीं कहती।   बेबी, तुम्हारा वह बूढ़ा बेजान होना चाहिए।   प्रेरित मैं कहता हूं, कि आदमिक मनुष्य को मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया था। वह अब आदमिक मनुष्य के रूप में नहीं रहता है। मसीह मुझ में रहता है।   मैं उसके आत्मा, सत्य के आत्मा के द्वारा जीता हूं।   आपको बस दूसरे को बाहर जाने देना है।   इश्माएल और उसकी दासी, और पुराना नियम  शरीर को बाहर निकालना ही संभव है।   उसे अब और नहीं जीना है।  और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।  और निश्चय जाना, कि जिस बात की उस ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है। इस कारण, यह उसके लिये धामिर्कता गिना गया।जैसा कि हम रोमियों की चौथे अध्याय में चौबीस और पच्चीस पद पढ़ते हैं    वरन हमारे लिये भी जिन के लिये विश्वास धामिर्कता गिना जाएगा, अर्थात हमारे लिये जो उस पर विश्वास करते हैं, जिस ने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से जिलाया। वह हमारे अपराधों के लिये पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिये जिलाया भी गया॥ हमारा ऐसा वादा है। अब जैसा कि हम पांचवें अध्याय से पढ़ते हैं, यह एक जीवन है।   हम विश्वास के द्वारा न्यायोचित हैं।   पिछले सभी पापों को क्षमा कर दिया जाता है।   उन्होंने हमें सत्य की आत्मा दी।   अब हमें जीवन की शुरुआत करनी है।   कितने लोगों ने समझा ? हम विश्वास के जीवन की शुरुआत कर रहे हैं। हम यात्रा पर जा रहे हैं।  हमें रास्ते में कई चीजों को प्रकट करने की जरूरत है।   यह जीवन जीने के लिए प्रकट होता है।  यह हमारे जीवन में व्यावहारिक होना चाहिए।   इसलिए निम्नलिखित अध्याय बहुत महत्वपूर्ण हैं।   फिर पांचवें अध्याय में प्रेरित हमें जीवन के कुछ क्षेत्रों के बारे में बताता है।   यह जीवन धन्य है पढ़ने के लिए।   हमारे पास पहले पढ़ने के लिए एक महत्वपूर्ण पद  है। रोमियों 5: 17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कराण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।  क्या यह लिखा है कि तू पाप में राज्य करेगा?   जीवन में राज करेंगे   यदि एक के अपराध के कारण मृत्यु राज्य करती है, तो हमें और क्या प्राप्त होगा?   अनुग्रह की प्रचुरता और न्याय का उपहार एक प्रतिज्ञा है।   अनुग्रह की प्रचुरता और न्याय का उपहार।   तभी हम उसके कारण जीवन में अधिक शासन कर पाएंगे।   इसके लिए क्या करें?   यह सवाल है।   हम जो इस अनुग्रह और न्याय के धनी हैं, उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए और इसके लिए भीख माँगनी चाहिए। धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएंगे। लेकिन अगर हमें भूख लगे तो हम क्या करें ?  तुम खाओगे   अगर हम भूखे हैं, तो क्या हमें बस बैठकर प्रार्थना करनी चाहिए?   जाओ और खाओ।   अगर ऐसा है तो हमें यह न्याय मिलना चाहिए।   तो हमें क्या खाना चाहिए?   परमेश्वर का वचन लगातार खाया जाना चाहिए। जब ​​हम इसे भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं, तो यह धार्मिकता का वचन है।   धार्मिकता के उस वचन से हमें धार्मिकता से जीने की शक्ति मिलेगी।   जब हम खाते हैं तो यह हमें स्वास्थ्य देता है,   हमें जीवन देता है,   प्रोत्साहन देता है   यहां सब जागकर बैठे हैं। नहीं खायेंगे तो क्या?   वरना हमें उपवास करना चाहिए।   वरना खाना न खाने से हम थक जाते हैं।   आध्यात्मिक भोजन ऐसा होता है   हमें परमेश्वर के वचन को वैसे ही प्राप्त करना चाहिए जैसे हम इसे प्राप्त करते हैं।   केवल कुछ अध्याय पढ़ने का कोई मतलब नहीं है।   कहानी की किताब पढ़ने का कोई मतलब नहीं है।   ज्यादा थ्योरी सीखने से कोई फायदा नहीं।   हमें इसे जीवित भोजन के रूप में प्राप्त करने की आवश्यकता है   तभी हम धार्मिकता का जीवन जी सकते हैं।   यह एक कृपा है   जब प्रभु यीशु मानव रूप में पृथ्वी पर आए, तो वे अनुग्रह और सच्चाई से भरपूर इस पृथ्वी पर आए।   यीशु हमें जीवन का नमूना दिखाते हैं।   विश्वास के द्वारा हमें न्यायोचित ठहराने के लिए हमारे पास परमेश्वर की कृपा है, लेकिन विश्वास से जीने के लिए हमें परमेश्वर की कृपा की भी आवश्यकता है।   विश्वास के द्वारा न्यायोचित ठहराने के लिए थोड़ा सा अनुग्रह होना ही काफी है।   अपने पहले चरण में, वह कृपा हमें तुरंत छू लेगी, लेकिन विश्वास में रहना संभव नहीं है।   वहाँ हमें बहुतायत में अनुग्रह और न्याय मिलना चाहिए।   कितने लोगों ने इसे समझा?   वे वही हैं जो उसके कारण जीवन पर सबसे अधिक शासन करते हैं।   क्योंकि यदि उसी के द्वारा राज्य करता है, तो वे बहुतायत के अनुग्रह और धर्म के दान से प्राप्त करेंगे।   सबसे बढ़कर यह सब यहाँ बहुत बढ़िया तरीके से कहा गया है।   जब पाप की बात आती है, तो अपराध करने वाले के कारण मृत्यु राज्य करती है, और जो अनुग्रह की बहुतायत और धार्मिकता का उपहार प्राप्त करते हैं, वे उसके कारण अधिक होते हैं।   ऐसा नहीं है कि मुझे यह पसंद नहीं है    क्या इसमें पाप का कोई स्थान है जब यह कहा जाता है कि जो लोग अनुग्रह और धार्मिकता की प्रचुरता प्राप्त करते हैं, यदि वे उसी के लिए राज्य करते हैं तो वे सबसे अधिक शासन करेंगे ?   पाप का वहां कोई स्थान नहीं है।   जैसा कि अब हम सामान्य तौर पर कहते हैं पाप इतना कठिन है कि उससे पार पाना बहुत कठिन है। हम दुनिया में रहते हैं और फिर कुछ पद वहां लाएंगे उसे याद है कि हम धूल हैं। यह सब क्यों? हम पाप का बहाना लेकर आते हैं।यहाँ ऐसा नहीं कहा जा रहा है।पाप राज्य करता है, परन्तु यदि आप परमेश्वर के अनुग्रह और धार्मिकता की प्रचुरता प्राप्त करते हैं, तो हे मसीह, आप जीवन में सबसे अधिक शासन करेंगे, केवल मसीह के लिए।यह एक ऐसी चीज है जिसे हमें विश्वास के द्वारा स्वीकार करना चाहिए मुझे अब भी याद है जब मैं क्लास दे रहा था तो मैं गलोर में ही मैंने समझाया था।तब यहोवा के दास का एक प्रिय मित्र मेरे पास आया और उसने मुझ से कहा पादरी ने मुझे बताया कि यह अभी-अभी प्रकट हुआ था।यह अच्छा है जब वह मुझे देखता है और कहता है कि मुझे पता है कि यह आदमी अपने जीवन पर अधिक से अधिक शासन करने जा रहा है। यदि ऐसा है, तो मेरे पास इस पाप को दूर करने के लिए मुझसे परे एक शक्ति है।जब हमें अनुग्रह और न्याय की प्रचुरता प्राप्त होती है, तब हमें उसे खोजना चाहिए।ऐसा नहीं है कि मुझे यह पसंद नहीं है ऐसा कुछ नहीं बच सकता।केवल विश्वास द्वारा औचित्य पर्याप्त है।यह बेवकूफी है परमेश्वर  ने हमें पहले ही जीवन में सबसे अधिक शासन करने की भलाई दी है।फिर हमें इसका सदुपयोग करना होगा।रोमियों 5: 1  सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। विश्वास से न्यायसंगत नहीं और फिर वहीं रुक गया,यदि केवल विश्वास द्वारा औचित्य पर्याप्त होता, तो चौथे अध्याय के साथ रुक जाना पर्याप्त होता। लेकिन इसकी वहीं पर समाप्ति नहीं हो जाती।विश्वास द्वारा औचित्य हमें बताता है कि यह एक शुरुआत है।धर्मी ठहराए जाने के बाद, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखते हैं।स्तर एक और शब्द है।स्तर का सुसमाचार पाप का क्या हुआ? मनुष्य परमेश्वर  से दूर हो गया।हमने इसे पढ़ा।यशायाह की किताब और कई अन्य अंशों से दूर।परन्तु अपने छुटकारे के द्वारा मसीह के द्वारा, लहू के द्वारा, उस ने इस विश्वास के द्वारा परमेश्वर से मेल कर लिया, जिन्होंने विश्वास किया और अंगीकार किया, जब उसने पाप के लिए प्रायश्चित किया था।यही शांति है।यीशु ने चेलों के पास आकर कहा, हे बालकों, तुम्हें शान्ति मिले।यह विश्व शांति के बारे में नहीं है।मैं इस लहू के साथ अपने पिता के पास गया और मेल कर लिया और तुम्हारे लिए स्वर्ग में बैठने के लिए तैयार हो गया।   मैं स्तर पर आ गया हूँ और अब मैं वहाँ जाकर पवित्र आत्मा को भेजने जा रहा हूँ।   यदि आप उस आत्मा के अनुसार जीते हैं, तो आप पृथ्वी पर होते हुए भी स्वर्ग में बैठने वाले हैं।   फिर हमें वहाँ जाना है।   रोमियों अध्याय 5, पद 2।  जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें। इस अनुग्रह के लिए जिसमें हम खड़े हैं अर्थात् अनुग्रह के मार्ग तकयही तरीका है।बाइबल कहती है कि न्याय ही रास्ता है कृपा का मार्ग,आस्था का मार्ग यही तरीका है।  यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता। फिर हम इस रास्ते में प्रवेश करते हैं। विश्वास द्वारा औचित्य में विश्वास के माध्यम से इस अनुग्रह के माध्यम से हमारे पास अनुग्रह द्वारा पहुंच है। हम अभी सवार हुए हैं और अब हमें यात्रा शुरू करनी है। अगला वाक्य  जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।  तो जब हम इस तरह देखते हैं तो हम दूर के अंत में क्या देखते हैं ? परमेश्वर की महिमा महिमामय प्रभु यीशु को वहाँ एक छोटे से रूप में देखना है।यह सिर्फ शुरुआत है।हमें प्रभु यीशु को महिमा के साथ बैठे हुए देखना चाहिए।फिर क्रॉस वापस आ गया। हम उस पर क्रॉस के माध्यम से चढ़ गए।हम क्रूस के पार कहाँ गए ? पथ में। अब हम कहाँ हैं ? महिमामंडित मसीह पाप के प्रायश्चित के बाद महिमा के दाहिने हाथ विराजमान है। आपको उस चेहरे को देखना होगा। इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकने वाली वस्तु, और उलझाने वाले पाप को दूर कर के, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।  लक्ष्य आगे बढ़ना है।तब  सो हे पवित्र भाइयों तुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो। पिता के दाहिने हाथ पर बैठे महिमामंडित यीशु को देखते हुए आगे की यात्रा करें, यीशु का सुनहरा चेहरा जो आपको पूरी तरह से बचा सकता है, वह यीशु जो आपको पूर्ण बना सकता है। कितने लोग इसे समझते हैं ?  हम कहाँ झूठ बोल रहे हैं ? जो खुले में लेटते हैं। कलवारी के माध्यम से हम यीशु मसीह की कृपा से, उनके क्रूस पर चढ़ने से, ईश्वर की कृपा से विश्वास से धर्मी हैं, और हम अनुग्रह के मार्ग में प्रवेश करते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती यात्रा अब शुरू होती है। पहला कदम हमारे लिए आसान था। हम उस हिस्से में चढ़ गए। लेकिन अब हम अपने जीवन का अध्ययन करने जा रहे हैं। परमेश्वर की महिमा की आशा में स्तुति करो। अगर हम वास्तव में इस रास्ते पर हैं तो हमारे पास यह आशा और अधिक होगी। इसमें हमारी आशा शुरू होती है, हमें थोड़ा सा मिल जाएगा और फिर जैसे-जैसे हम प्रगतिशील सोच के साथ आगे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे यह हमारे सामने थोड़ा और प्रकट होने लगेगा। जब हम उसके उच्चतम बिंदु पर आते हैं तो हम उस चेहरे से नज़रें नहीं हटाते। इतना ही परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं॥  इसलिए जब हम अपने आने और जाने में परमेश्वर के सामने होते हैं, तो हम सभी इस महिमामयी प्रभु का ध्यान करते हुए जीते हैं। और फिर स्तुति करो हमारी स्तुति है। न तो दुनिया में और न ही हमारे इस पुराना  आदमी की प्रशंसा करने के लिए। तैयार होना और तैयार होना ठीक है। हमारी स्तुति नहीं है। हमारी पत्नी और बच्चों के पास उनके लिए जगह है। हमारी स्तुति नहीं है। इसलिए प्रेरित ने कहा  पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूं, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिस के द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूं। वह इसका एक हिस्सा है। हमारा सूली पर चढ़ना उस क्रॉस के माध्यम से है। तभी हम इस स्तुति में आ सकते हैं। दुनिया बहुत तारीफ करेगी। इसलिए कहा जाता है कि दुनिया से और दुनिया में जो कुछ भी है उससे प्यार मत करो। रोमियों 5: 3,4  केवल यही नहीं, वरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है। तो इस जीवन यात्रा में अभी भी परमेश्वर  की प्रक्रियाएं हैं। यह सब मिट्टी की तरह दिखता है, जैसे सोने की खान में अयस्क। नहीं तो इसके अंदर सोना नहीं मिलेगा। वह क्या है ? सिर्फ मिट्टी। यह एक लंबी प्रक्रिया है। जब वह प्रक्रिया की जाती है, तो एक छोटा लाल रंग दिखाई देता है। फ़िल्टर होने पर कुछ भी नहीं। यह एक बड़ा बैरल है। अंदर इधर-उधर सोना है। लेकिन जब आप इसे पूरी तरह से साफ कर देते हैं, तो आपको थोड़ा सा मिलता है। इसके बाद अग्नि परीक्षा होती है। यह सोने की तरह पिघलता है और बाहर लाया जाता है। जैसा कि हमने कहा है, जब हम यहां चढ़ते हैं, तो हम अपने विश्वास से धर्मी ठहरते हैं। सोच रहा है, देख रहा है और देख रहा है।एक बड़ा समूह ऐसे ही जमीन पर बैठा है। कारण अज्ञात है। इन सत्यों को जाना नहीं जा सकता। तो यह वह जगह है जहाँ हम निर्माण करते हैं। हमें शुद्ध करना। इसलिए जब हम पढ़ते हैं तो दुख और सहनशीलता होती है, दुख का वर्णन करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं। यानी जब हम इस रास्ते से नीचे जाते हैं तो देखते हैं कि परमेश्वर  हमारी परीक्षा ले रहे हैं। हम इसे याकूब की पत्री में थोड़ा और स्पष्ट रूप से पढ़ते हैं। तब हम याकूब की पत्री में पढ़ते हैं कि कष्ट सहन करना है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम वहां यह महसूस करने के लिए पढ़ते हैं कि स्थिरता हमारे जीवन में आने वाले कई परीक्षणों के माध्यम से स्थिरता पैदा करती है और विपरीत परिस्थितियों में भी प्रशंसा करती है। वहाँ हम पढ़ते हैं कि दृढ़ता वह कार्य है जिसके द्वारा हम सिद्ध और सिद्ध बनते हैं। तो क्या किसी को धैर्य या धीरज शब्द का अर्थ पता है?सहनशीलता तत्परता।तैयारी? सिद्धांत का अर्थ है वह जो उस पर अमल करता है जिसमें वह विश्वास करता है। वही सिद्धन है।हमारे देश में पहले सिद्ध होते थे।कुछ मान्यताएं हैं जिन पर वे विश्वास करते हैं।वे वही हैं जो इसे इस तरह मानते हैं। वे वही हैं जो इसमें रहते हैं। उन दस्तावेजों का कभी-कभी किसी विशेष उद्देश्य के लिए अभ्यास किया जाता है।कुछ मंत्रालय देखेंगे,या वह कुछ क्षेत्रों को देखेगा, अगर वह ऐसा करना चाहता है, तो वह केवल एक सिद्ध बन सकता है।तो वह शब्द यहाँ दिया गया है।अर्थात्, जब परमेश्वर हमें बुलाता है तो उसके कुछ उद्देश्य होते हैं। उसके पास उद्देश्य होते हैं।तो अगर हमें उन लक्ष्यों तक पहुंचना है, तो हमें सिद्ध बनना होगा।यदि धर्मी सिद्ध नायक हैं जो जीवन से घृणा करते हैं और वीणा के साथ गाते हैं, तो केवल सिद्ध ही गा सकते हैं।नहीं तो गाना खत्म हो जाएगा।फिर यह जीवन का तरीका है।लेकिन उन्हें खुद ही इसका पता लगाना होगा।मैं अपने जीवन को उतना ही जानता हूं जितना मैं कर सकता हूं।यह सच है कि यह पहले ही लिखा जा चुका है।इस प्रक्रिया के द्वारा ही हम वह पात्र बन सकते हैं जिसकी ईश्वर इच्छा करता है।उनके बालियां और हार मिस्र से लाए गए सोने और चांदी और मिस्र की मूर्तियां हैं। ये रूप बेसेल, ओहल्या हैं, जो अभी भी एक पिघलने वाली आत्मा से भरे हुए हैं उनके साथ काम करने वाले लोग परमेश्वर  के उदाहरण में एक निर्माण करेंगे।हम जानते हैं कि वाचा का सन्दूक, अनुग्रह और करूब ,सोने का बना था,

कवर लैंप यह सब मिस्र के रूप थे ,इसे बेशक से आग  में लगाकर गला देना चाहिए

।केवल तब ही अलग होने के लिए किया जा सकता है।जब यह कहता है, यह मूसा से अलग कहा जाता है।मॉडल के लिए, हमारे पास मिस्त्री की मिस्त्रनी होगी।हम वही हैं जो दुनिया से यहां आए हैं   फिर फॉर्म पहले जैसा ही हो जाता है।   विश्वास से हमारे भीतर कुछ काम हुए।   लेकिन रूप, हमारा मन, हमारी इच्छाएं, हमारी भावनाएं, हमारे शरीर के अंग सभी यीशु द्वारा निर्धारित पैटर्न में बनने चाहिए।   हमें मसीह के मन में बनना चाहिए।   हमें मसीह की इच्छा के अनुसार बनना चाहिए।   हमें वैसे ही बनना चाहिए जैसे मसीह इस पृथ्वी पर परमेश्वर की इच्छा की पूर्णता में रहते थे और उन्होंने अपना कार्य किया।   हमें मसीह की उस छवि के प्रति होना चाहिए।   वह मंदिर के लिए अपनी जान देने को तैयार है।   उन्होंने कहा कि इस इमारत को ध्वस्त कर दो क्योंकि हम इसमें से एक नया निर्माण करने जा रहे हैं और हमें भी ऐसा ही करना चाहिए   परमेश्वर  के हाथ में।   हमारा कहना है कि इसे तोड़कर गिरा देना चाहिए।   मैंने ऐसा कहा है।   इसे स्थानीय भाषा में कहा जाना चाहिए।   लेकिन ये बाइबिल के शब्द हैं।   थोड़ा सा भी टूटने के लिए मत छोड़ो।   मैं वह नई रचना बनना चाहता हूं।   तब हमें उस वास्तविक स्थान पर जाना चाहिए।जब हम वचन की सच्चाई को समझते हैं, तो हमारा प्रार्थना कक्ष एक वास्तविक कार्य क्षेत्र होना चाहिए।   दुनिया को देने के लिए कहने में समय बर्बाद करने के बजाय, हमें उस कार्य का केंद्र होना चाहिए जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार किया जाता है।   पवित्र को वहाँ हमारे प्रार्थना कक्ष में आना चाहिए।   जब वह हमारे जोश और हमारे जोश को देखे तो पवित्र को नीचे आना चाहिए।   इब्राहीम के पास आया।   जब पवित्र परमेश्वर आपको नीचे आने के लिए कहते हैं, तो विचार आपके अंदर जाने का होता है, नीचे आने की कोई आवश्यकता नहीं है।   क्योंकि परमेश्वर की उपस्थिति हम पर आएगी और तुम उस उपस्थिति से शुद्ध हो जाओगे। जब शुद्धिकरण की बात आती है   sanctify अंग्रेजी में बोला जाने वाला शब्द है।   हमें पवित्र किया जाएगा।   तब हमारी सारी आंतरिक जलन, हमारी एकाग्रता, हमारे मन की तैयारी ही वह सब कुछ है जिसकी आवश्यकता है।   यीशु उसी दृढ़ संकल्प को ध्यान में रखते हुए यरूशलेम की यात्रा करते हैं।  यह एक अस्थायी जीवन नहीं है, यह केवल पिता की मदद करने की बात है।   राजाओं के रूप में शासन करने के लिए यह हमारी पसंद है।   यह स्वर्गीय बनने का विकल्प है    हमें उन आध्यात्मिक सत्यों को अपने भीतर निवेश करना चाहिए।   जब हम अपने भीतर के शरीर के क्षेत्रों को देखते हैं, तो यह केवल अलग हो सकता है   क्योंकि मेरी बुलाहट पृथ्वी की पुकार नहीं है, मेरी बुलाहट स्वर्ग की पुकार है।   वह चेतना हमारे पास आनी चाहिए। दुख में प्रशंसा करनी चाहिए। आशा टूटती नहीं है। आशा टूटती नहीं है।   क्योंकि हम जानते हैं कि यह हमें प्रभु की उस परीक्षा में ले जाने के लिए हो रहा है जो हमें उसकी पूर्णता तक ले जाने के लिए है।   वह आशा क्या है ?   परमेश्वर  की महिमा के लिए आशा   हमारे पास यह आश्वासन है कि वह आशा हमें परमेश्वर की महिमा में लाने के लिए है।   रोमियों 5: 5    और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।  इसका अर्थ है कि परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उंडेल दिया गया है।   क्यों डाला जाता है ?   मैं इसे एक वाक्य से आपको साबित कर सकता हूं।   रोमियों अध्याय 8, पद पैंतीस को पढ़िए।  कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवा र ? जैसा लिखा है, कि तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होने वाली भेंडों की नाईं गिने गए हैं।  परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।  क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई,  न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी॥ कितने लोगों ने समझा?   फिर इसके लिए हमारे दिलों में परमेश्वर का प्यार दिया जाता है।   मुख्य ।प्रेरितों की तरह, दुनिया में सब कुछ हमारे लिए असंभव नहीं है।   मुझे इस प्यार से अलग करने के लिए,   मुझे विश्वास है कि कोई भी शक्ति मुझे इस आशा से अलग नहीं कर सकती।   फिर जब हम दुख के द्वारा इस प्रक्रिया में आते हैं, तो आशा टूटती नहीं है।   क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दी गई है, उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उंडेला जाता है।   कोई शक्ति हमें परमेश्वर के उस प्रेम से अलग नहीं कर सकती।   धोखे की आत्मा के लिए यह संभव नहीं है कि वह आत्मा को संसार में खींच ले।   क्या कारण है?   पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उंडेला जाता है।   रोमियों 5:9. सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? हम सब ध्यान दें।   उसके खून से न्यायोचित होने के बाद।   क्या उसके बाद कुछ है?   या यह जायज है?   क्या जीवन खत्म हो गया है? मुझे नहीं पता।   तब हम पढ़ते हैं कि हम विश्वास से धर्मी ठहरते हैं, और अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखते हैं   इतना कहने के बाद फिर एक प्रोसेस हमें दिखाता है।   यहाँ नौवें पद में रोमियों की  लिए पत्री का पाँचवाँ अध्याय है  सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके sद्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे ? क्या आप इसके बाद नाराज हैं?   वहाँ है।   यदि आप यीशु मसीह के द्वारा नहीं जीते हैं, तो क्रोध है।   यह फिर से पाप है।   हम दो पद पढ़ने जा रहे हैं जो परमेश्वर के वचन में बहुत स्पष्ट हैं।   एक हम पढ़ते हैं।   यदि हम यीशु के द्वारा नहीं जीते, और कहते हैं कि हम यीशु के द्वारा जीते हैं, तो जब वह सत्य की आत्मा से बात करता है, जो यीशु की आत्मा है, तो वह क्रोध से और कितना बच पाएगा |   कितने लोगों ने उस पद को समझा?   रोमियों 5: 10 क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे ? वहाँ नहीं टिकता।   स्तर आ गया   धन्यवाद हलेलुजाह   अब मैं जीने जा रहा हूँ। जैसा मैं चाहता हूँ। परमेश्वर ने सब कुछ किया है   It is finished मुझे अभी खत्म करना है।   यदि आप यीशु के द्वारा नहीं जीते हैं, तो आप समाप्त हो जाएंगे यदि आप वचन की आज्ञाओं के अनुसार नहीं जीते हैं।   लेकिन यह एक और परिष्करण है   यीशु पिता की इच्छा के तैयार उत्पाद के रूप में समाप्त हो गया है।   लेकिन यह कोई नहीं समझता।   यीशु ने वही किया जो उसने पृथ्वी पर करने की आज्ञा दी थी।   अभी आधा हुआ है। अब स्वर्ग में एक क्रिया है।   कितने लोग इसे समझते हैं?   जब हमें पृथ्वी पर काम करने के लिए बुलाया जाता है, तो हम पाप से मुक्त हो जाते हैं,   आदम और हव्वा में कई क्षेत्र हैं।   एक व्यक्ति ने आदम को कलवारी के क्रूस से सूली पर चढ़ा दिया।   उसने अपने शरीर में हमारे दो पापों को सह लिया और हम सभी को इसके लिए क्षमा कर दिया।   धैर्य ने इसे रक्त से संभव बनाया।   और फिर इस खून को देखकर हमारे खून पर कई अधिकार हैं।   यह नए नियम के लहू से है कि कोई भी परमपवित्र स्थान में प्रवेश कर सकता है।   इस शब्द का विमोचन रक्त द्वारा होता है।   ऐसा ही नया कानून हमारे भीतर है   तो रक्त के कई क्षेत्र हैं।   इसके अलावा, उसने अपने शरीर के परदे को फाड़ दिया और हमारे लिए जीवन का एक नया तरीका स्थापित किया।   तो यह पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण सेवकाई है जो वह करता है।   इसके अलावा, पिता का खुलासा किया गया था।   हमें सलाह दी।   उन्होंने हमें एक जीवन मॉडल दिखाया।   ये सभी कार्य पृथ्वी पर हमारे लिए हैं।   अब हमें स्वर्ग बना दो।   यदि आप स्वर्गीय होना चाहते हैं, तो पुनरुत्थान एक पार्थिव कार्य है।   लेकिन प्रायश्चित एक ऐसा कार्य है जो स्वर्ग में होता है।   क्योंकि हमें महायाजक या महान परमेश्वर के पास जाना है,   खून के साथ सिंहासन पर जाओ।   तब स्वर्ग में सबसे तेज़ काम हमारे लिए पवित्र आत्मा को भेजना है।   क्यों?   प्रभु के साथ उस महिमा से जुड़ने के लिए।   मैं नहीं जानता कि उनका क्या होगा जो इस पवित्र आत्मा में नहीं रहते।   मैं कई सालों तक ऐसे ही रहा। सब कुछ व्यर्थ था   कितने लोग इसे समझते हैं ?   जब मैं यह सब कहता हूं, तो मेरी आत्मा इस प्रकार उत्तेजित हो जाती है।   किसी भी समय।हम हर समय सिर्फ क्रॉस नहीं कह सकते।   परमेश्वर के बच्चे। क्रूस के बाद एक महान कार्य किया जाना है।   पुनरुत्थान क्रूस के बाद है। जब हम पुनरुत्थान के बाद स्वर्गीय  में चढ़ते हैं तो पवित्र आत्मा हमें दिया जाता है।   उसे तो स्वर्ग में ही जाना होगा।   तुम वहाँ केवल महायाजक के रूप में बैठ सकते हो, वह सबसे बड़ी स्थिति है।   वह शरीर रूप में इस पृथ्वी पर आया और यहां के सभी बुरे कामों को पूरा किया और यहां जो बुरे काम किए वे सभी बुरे हैं।   .यहाँ प्रभु है जो पाप में सभी को बचाने के लिए इन सभी पापों को दूर करता है।   यह बहुत ही बुरा कर्म है।   परन्तु अब जब वह स्वर्ग में पिता के दाहिने विराजमान है, तो वह उन कामों को करता है जो स्वर्ग में हैं।   वहाँ वह हमें स्वर्ग बनाने का कार्य कर रहा है।   यदि आप इसे सही कर रहे हैं, तो आप अब पीछे मुड़कर नहीं देख रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं।   महिमा की यात्रा यीशु, विश्वास के कर्ता   और समाप्त करने वाले की ओर देख रहे हैं   यह वही है जो हमारा प्रभु अब स्वर्ग में बैठे हुए कर रहा है, जबकि कई पुत्रों को महिमा की ओर ले जा रहा है।   फिर उसके खून से  क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे ?  क्या होगा अगर हम वह जीवन नहीं जीते?   यह एक बड़ा सवालिया निशान है, है ना?   बस उन्हें यह समझने की जरूरत है।   आप यीशु का जीवन कैसे प्राप्त करते हैं?   शब्द। कौन मात देगा?   पवित्र आत्मा।   जाने और आने पर सब कुछ सामूहिक है।   तो अब मैं क्या करूँ?   मैं पवित्र आत्मा से नहीं माँगता, मैं प्रभु से माँगता हूँ।   हे प्रभु, इसे मुझ पर प्रकट करो।   वह आंतरिक आवाज बहुत शक्तिशाली है।   अगर हम इसे प्राप्त कर लेते हैं, तो हमारी कई समस्याओं का समाधान हो जाएगा।   तब यह वचन उसके जीवन के द्वारा हम पर प्रगट होगा।   शब्द ही जीवन है, केवल शब्द नहीं।   खट्टा शब्द नहीं।   समारोह शब्द नहीं है।   विज्ञान अध्ययन के लिए शब्द नहीं है।   जीवन का शब्द हम यही चाहते हैं।   यदि भीतर जीवन है, तो परमेश्वर के बच्चे उपदेश देने और सिखाने आएंगे।   जब परमेश्वर  का समय होगा तो सारी जिंदगी निकल जाएगी।   यह शब्द जीवित निकलेगा।   सिर्फ उल्टी शब्द नहीं।   उसमें जान है,   उसी में मुक्ति है,   अंधों की आंखें खोल देगा,   यह वह मार्ग है जो कुछ को अनंत काल तक ले जाता है।   उन्हें इसका पहला संदेश मिलेगा।   उन्हें इसके संदेश मिलते रहेंगे।   फिर उसमें और कितनी जान होगी   वह इसके द्वारा जीवित रहेगा।   उसके कोप से और कितना बचेगा!   उन दो पदों  को थामे रहो   एक यूहन्ना का चौथा अध्याय और दसवाँ पद है।   प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा। यह बात हर कोई मानता है और किसी को सिखाने की जरूरत नहीं है।   अर्थात्, जिसने हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा, वह सच्चा प्रेम है।   हम अपने पापों का समाधान नहीं हैं,   हम पढ़ते हैं कि यह हमारा काम नहीं है।   यह यीशु मसीह द्वारा किया जाता है   लेकिन अगर आप इसे मानते हैं, तो आपको अगले पद पर भी विश्वास करना चाहिए।   एक यूहन्ना के नौवें पद का चौथा अध्याय है।  जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। तब प्रेम हमें दो आयामों में दिखाता है।   एक हमारे पापों का प्रायश्चित है,   यीशु मसीह द्वारा पापों की क्षमा।  वहाँ मत रुको अगला वादा प्राप्त होना चाहिए।   वो क्या है ?   क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा, कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।  यही हमारा वादा है। आपको आशा के विपरीत आशा में विश्वास करना होगा। कोई सवाल नहीं पूछा।   यदि आप यीशु मसीह के द्वारा पापों की क्षमा में विश्वास करते हैं, तो आपको भी विश्वास के द्वारा यीशु मसीह का जीवन जीना चाहिए।   यदि आप विश्वास नहीं कर सकते,   यदि मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकता तो मुझे संदेह है कि पहला विश्वास सही है।   कोई भी मुझे यीशु मसीह के लहू से मुक्तिदाता कह सकता है।   अगर हम इस पर विश्वास करते हैं, अगर यह हमारे जीवन में एक वास्तविकता है तो निश्चित रूप से हम इसके द्वारा जीते हैं।   या हमारा वादा उसकी आत्मा, सत्य की आत्मा द्वारा जिया गया जीवन है।   मुझे इसे प्राप्त करने की आवश्यकता है। मुझे इस पद 


 को पढ़ने और इसे परमेश्वर द्वारा सुनाने की जरूरत है   पवित्र एक मेरा वादा है याद दिलाकर जगाना चाहिए।   यह मध्यस्थता प्रार्थना कई भविष्यसूचक पुस्तकों में पाई जाती है।   ऐसे ही हमें याद दिलाना चाहिए।   वहां लिखना बहुत मुश्किल है।   क्या भगवान भूल जाते हैं? मुझे नहीं पता।   भगवान को कोई विस्मृति नहीं है।   परमेश्वर जानता है कि जब उसका बच्चा उसके लिए भीख माँगता है और दस्तक देता है, वहीँ परमेश्वर कार्य कर सकता है।   यहीं पर परमेश्वर के कार्य करने के लिए हमारे हृदय के द्वार खुल जाते हैं।   आइए हम पांचवें अध्याय पर आते हैं।   यह वह जगह है जहाँ हम उस अनूठी प्रथा को हर जगह पाते हैं।   अर्थात्, रोमियों की पत्री के पांचवें अध्याय के पंद्रहवें पद में   पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लागों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ। क्या यह थोड़ा अधिक हो गया है?   ज्यादा से ज्यादा। इतनी कृपा प्राप्त करना कैसा होगा?   हम कहते हैं कि हम यहां नहीं रह सकते।   थोड़ा सा अनुग्रह करो और तुम मुझे स्वर्ग में ले जाओगे, चाहे मैंने कितने भी पाप किए हों।   परमेश्वर के बच्चे नहीं।   एक ऐसा क्षेत्र है जहां हम अनुग्रह के अधीन हैं।   अनुग्रह अनंत है।   तब अनुग्रह का उपहार बहुतों के लिए बहुत अधिक हो गया है।   रोमियों 5: 5:16,17  और जैसा एक मनुष्य के पाप करने का फल हुआ, वैसा ही दान की दशा नहीं, क्योंकि एक ही के कारण दण्ड की आज्ञा का फैसला हुआ, परन्तु बहुतेरे अपराधों से ऐसा वरदान उत्पन्न हुआ, कि लोग धर्मी ठहरे। क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कराण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।

तब हम जानते हैं कि हमें वहां क्या दिखा रहा है।   हम आम तौर पर पाप को महान के रूप में देखते हैं।   मेरे लिए उस पाप से मुक्त होना कठिन है।   परमेश्वर सब कुछ जानता है।   हमारी कमजोरी का समर्थन करता है।   यह सब सच है लेकिन क्या हमने इसके लिए भीख मांगी है?   यह मार्ग कितने नाम पढ़ता है?   यानी कई जगहों पर लिखा है कि अनुग्रह और पाप एक नहीं हैं।   कहने का तात्पर्य यह है कि अनुग्रह में कई बार बच्चों के पापों को दूर करने की शक्ति होती है।   पाप और अनुग्रह एक ही चीज नहीं हैं। मैं जानता हूं कि पाप का शासन होता है। पाप में एक शक्ति होती है। लेकिन मेरी कृपा उससे कहीं अधिक है।   अति प्रयोग किया जाता है।   हम जानते हैं कि प्रेरित पौलुस ने अपने आप को अपने शरीर में एक कटार दिया ताकि वह अपने प्रकाशन की अधिकता पर गर्व न करे।   उसे छुरा घोंपने के लिए एक फरिश्ता दिया गया है।   शैतान के एक दूत को छुरा घोंपने का अवसर दिया जाना बहुत कठिन स्थिति है।   प्रेरित ने इसे हटाने के लिए तीन बार प्रार्थना की, लेकिन उत्तर दिया गया दो कुरिन्थियों अध्याय बारह नौवां पद   और उस ने मुझ से कहा, मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे।

हम उस परी को बदलते हुए नहीं देखते।   परन्तु यहोवा कहता है, हे मेरे बालक, मेरा अनुग्रह तेरे लिये  काफ़ी है।   मेरी कृपा है कि आप की किसी भी स्थिति में इसे पार कर लें और इसे दूर करने के लिए वहां मजबूती से खड़े रहें।   इसलिए हमें अनुग्रह के लिए भीख माँगने की ज़रूरत है।   हमें इसे विश्वास से लेना चाहिए।   यह कोई छोटी सी कृपा नहीं है।   यह एक ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे विश्वास द्वारा दोषमुक्ति में पाया जा सकता है   जीवन में सर्वोच्च शासन करने के लिए हमें विश्वास करना चाहिए और अनुग्रह प्राप्त करना चाहिए।   उस अनुग्रह की परिपूर्णता में, यीशु अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो गए।   मैं समय-समय पर अपने पिता से इसके बारे में प्रार्थना करता हूं।   यदि पुत्र को अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण इस पृथ्वी पर भेजा जाता,   यदि तू ने मुझे अपनी महिमा में अपना पुत्र होने के लिए चुना है,   मैं इसमें समृद्ध होना चाहता हूं, अप्पा।   तब परमेश्वर के साथ हमारी बातचीत हमेशा अच्छी होती है।   फेलोशिप तब होती है जब हम इन वादों पर टिके रहते हैं और आशा के विपरीत विश्वास करके उस आशा के साथ आते हैं।   अनुग्रह की प्रचुरता तब होती है जब वह संगति चलने लगती है।   वहां कोई शैतान भी नहीं पहुंच सकता। एक यूहन्ना पाँचवाँ अध्याय अठारहवाँ पद    हम जानते हैं, कि जो कोई परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह पाप नहीं करता; पर जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ, उसे वह बचाए रखता है: और वह दुष्ट उसे छूने नहीं पाता। परमेश्वर के बच्चों को सांप, बिच्छू और दुश्मन की सारी शक्ति को कुचलने की शक्ति दी जा है।   जब तीवह अनुग्रह की बहुतायत में रहता है, जब वह धार्मिकता की बहुतायत में रहता है, जब वह वचन की बहुतायत में रहता है, जब वह अपने जीवन की बहुतायत में रहता है, तो शत्रु निकट नहीं आ सकता।   परमेश्वर के बच्चे, जब मैं अक्सर उन क्षेत्रों के बारे में सोचता हूं, तो समृद्धि की बात आती है तो यहां एक बड़ा चक्र होता है।   हम आत्मा के एक बड़े घेरे से घिरे हुए हैं   पास नहीं हो सकता   मैं आपको एक अनुभव बताता हूं।   जब सब लोग आत्मा से दण्डवत कर रहे थे, तब किसी ने मेरे पास आकर रोते हुए मुझ से कहा।   मैंने बपतिस्मा लिया था लेकिन मैंने इसे खो दिया और मैं इसे वापस पाना चाहता हूं।   मैंने उसे उपवास और प्रार्थना करने के लिए कहा।   उस दिन शाम की आराधना में परमेश्वर का पवित्र आत्मा बहुत शक्तिशाली रूप से आया।   उन्होंने कहा कि इससे पहले कि पवित्र आत्मा महान शक्ति में आए, एक और शक्ति ने उन्हें छोड़ दिया।   एक शक्ति निकल जाती है अचानक परमेश्वर की आत्मा की शक्ति एक तेज आवाज में अन्य भाषाएं बोलती है।   जब वह बोलता है, तो वह देख सकता है कि वह जो शक्ति पीछे छोड़ गया है वह वापस आ रही है, लेकिन जब वह वहां एक घेरे में पहुंचता है, तो वह उस शक्ति को जाते हुए देख सकता है। ऐसा हमला करने आ रहा है लेकिन जब वह उस बेल्ट के करीब आता है तो ऐसा लगता है कि वह बल दीवार से टकरा रहा है और पीछे की ओर जा रहा है।   तुम्हें पता है कि यह क्या है ?उस समय मैं एक आध्यात्मिक दायरे में था।   वह भाई।जब हमने प्रार्धना  की तो हमारा एक बड़ा आध्यात्मिक चक्र था।   अन्य ताकतें कहीं नहीं पहुंच पाएंगी।   तब हमारे जीवन में, जब हम सुबह कुछ घंटों के लिए परमेश्वर की उपस्थिति में बैठते हैं, परमेश्वर के साथ संगति में परमेश्वर के वचन का ध्यान करते हैं और वास्तव में आध्यात्मिक वातावरण में बाहर आते हैं, तो हम जानते हैं कि आसुरी शक्तियां हमारे पास नहीं आ सकती हैं।   यही वह जीवन है जो हमें हमेशा के लिए जीना चाहिए। इसके बिना हम दुनिया की तरह नहीं रह पाएंगे और इस तरह नहीं रहेंगे। तब हम आपको बताएंगे कि आप परीक्षक हैं या यह सब परीक्षक की सलाह है, यह बेवकूफी है।      परमेश्वर की सन्तान। वह हमें यीशु मसीह द्वारा इस बहुतायत में जीने के लिए बुला रहा है क्योंकि हम उसके जीवन से प्राप्त होने वाले अनुग्रह और सच्चाई की सभी बहुतायत में जीना शुरू करते हैं।   मैं मसीह के द्वारा सब कुछ के लिये पर्याप्त हूं जो मुझे सामर्थ देता है।   क्योंकि उस पर काबू पाना ही हमारा जीवन है।   इसके अलावा, शैतान ने हमें गेंद को आगे-पीछे मारने के लिए नहीं बुलाया।   न चैन है और न खुशियां देखकर कुछ लोगों की जिंदगी हमेशा नाकामयाबी के शब्द होते हैं    घर में शांति नहीं परिवार में शांति नहीं जहां भी जाएं शांति नहीं। वह हमारा जीवन नहीं है।   जो हमें फंसाया है उससे बचे।   यह न्याय और शांति की प्रचुरता है। परमेश्वर का राज्य हमारे भीतर है  क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना पीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;  फिर वही हमारा जीवन है।   रोमियों सभोपदेशक अध्याय 5, पद 21   कि जैसा पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिये धर्मी ठहराते हुए राज्य करे॥

यह परमेश्वर के बच्चों का राज्य है।   फिर पांचवें अध्याय में आपको इसके सभी व्यावहारिक पहलुओं पर कई बार ध्यान करना होगा।   फिर इस जीवन में आओ, यही जीवन होगा।   इसकी वह एक रूपरेखा आपके भीतर होनी चाहिए।   कुछ पद तुम्हारे भीतर जाने हैं, तुम्हें उसकी रचना करते रहना है।   यह उसका वादा है और परमेश्वर के ठीक सामने है।   यह मेरा अधिकार है जब हम इसे उस विश्वास में कहते हैं क्योंकि वे उन्हें अजनबी और विदेशी कहते हैं।   यानी हम इस धन्य जीवन में आ सकते हैं।   आमेन  

For Technical Assistance                                                 Contact

Amen TV Network                                                         Pastor.Benny

Trivandrum,Kerala                                                         Thodupuzha

MOb : 999 59 75 980                                                    MOb: 9447 82 83 83

            755 99 75 980

Youtube : amentvnetwork       



Hindi Bible Class Youtube Link




            



Comments

Popular posts from this blog

റോമാ ലേഖനം 4 Malayalam Bible Class - Pr.Valson Samuel

                               റോമാ ലേഖനം 4 Malayalam Bible Class - Pr.Valson Samuel റോമാലേഖനം അതിൻ്റെ ഏഴാമത്തെ അദ്ധ്യായം നമുക്ക് ദൈവസന്നിധിയിൽ പ്രാർത്ഥനയോട് കൂടെ ധ്യാനിക്കാം.ഇത് ദൈവവചനത്തിൽ മനസ്സിലാക്കുവാൻ വളരെ പ്രയാസമുള്ള ഒരു അദ്ധ്യായം ആണ്.അനേകം ചർച്ചകളും വിമർശനങ്ങളും ഈ അദ്ധ്യായത്തിൻ്റെ അടിസ്ഥാനത്തിൽ ഉണ്ട്.എന്നാലും ദൈവത്തിൻ്റെ ആത്മാവ് തന്നെ നമുക്ക് ഈ ഭാഗങ്ങൾ വെളിപ്പെടുത്തി തരണം.ഇത് ദൈവവചനത്തിൽ ഏറ്റവും കുറച്ച് ചിന്തിക്കുന്നതായിട്ടുള്ള ഒരു അദ്ധ്യായം ആണ്.കാരണം അപ്പോസ്തലൻ്റെ മനസ്സിലുള്ളത് താൻ ആശയവിനിമയം നടത്തുന്നത് എന്തെന്ന് അറിയുവാനായിട്ട് അൽപ്പം പ്രയാസം ഉണ്ട്.ദൈവത്തിൻ്റെ ആത്മാവ് തന്നെ എൻ്റെ   നാവിലും നിങ്ങളുടെ ഹൃദയങ്ങളിലും അതിൻ്റെ ആ സത്യം നമുക്ക് വെളിപ്പെട്ടു കിട്ടണം.എന്താണ് അപ്പോസ്തലൻ ഈ അദ്ധ്യായത്തെ കുറിച്ച്  ഉദ്ദേശിക്കുന്നത് എന്നൊക്കെ ചിന്തിക്കണമെങ്കിൽ അതിൻ്റെ ആ ഒരു പശ്ചാത്തലവും ആ ഒരു  എതിർവാദവും നമ്മൾ മനസ്സിലാക്കേണ്ടത് ആയിട്ടുണ്ട്.മനുഷ്യവർഗ്ഗത്തെപ്പറ്റി നാം പഠിച്ചപ്പോൾ അവിടെ നാം മനുഷ്യനിലുള്ള അവൻ്റെ സ്വതന്ത്രമായിട്ടുള്ള തീരുമാനം ഇതിനെപ്പറ്റി നമ്മൾ ചിന്തിച്ചു.ഈ ഇച്ഛാ ശക

रोमियों की पत्री 4 Hindi Bible Class - Pr.Valson Samuel

                                                रोमियों की पत्री 4                    Hindi Bible Class - Pr.Valson Samuel  आइए हम प्रार्थना के साथ प्रभु की पत्री के सातवें अध्याय पर ध्यान करें।    यह परमेश्वर के वचन में समझने के लिए एक बहुत ही कठिन अध्याय है।   इस अध्याय पर आधारित कई चर्चाएँ और आलोचनाएँ हैं। हालाँकि, यह परमेश्वर का आत्मा है जो हमें इन अंशों को प्रकट करना चाहिए।   यह परमेश्वर के वचन में सबसे कम विचारोत्तेजक अध्यायों में से एक है।   क्योंकि प्रेरित के मन में यह जानना थोड़ा मुश्किल है कि वह क्या संवाद कर रहा है।   परमेश्वर का आत्मा स्वयं मुझ पर मेरी जीभ और तुम्हारे हृदयों में प्रकट होना चाहिए। इस अध्याय से प्रेरित का क्या अर्थ है, इस पर विचार करने के लिए, हमें इसके संदर्भ और इसके अंतर्विरोध को समझने की आवश्यकता है।   जब हमने मानवजाति के बारे में सीखा, तो हमने मनुष्य में उसकी स्वतंत्र इच्छा के बारे में सोचा।   जब ईश्वर ने यह इच्छा या इच्छा शक्ति मनुष्य को दी है, तो इसे मनुष्य की स्वतंत्रता पर छोड़ दिया गया है।   परमेश्वर की स्वतंत्र इच्छा का वह क्षेत्र हमारे भीतर यह देखने

റോമാ ലേഖനം 2 Malayalam Bible Class - Pr.Valson Samue

റോമാ ലേഖനം 2 Malayalam Bible Class - Pr.Valson Samuel വിശ്വാസത്താലുള്ള നീതീകരണം എന്നുള്ള വിഷയം റോമാ ലേഖനത്തിൽ നിന്നും മറ്റു ചില ഭാഗങ്ങളിൽ നിന്നും ചിന്തിക്കാം.റോമാലേഖനം മൂന്നാമത്തെ അദ്ധ്യായത്തിൽ ഇരുപത്തിമൂന്നാം വാക്യം. ഒരു വ്യത്യാസവും ഇല്ല എല്ലാവരും പാപം ചെയ്തു ദൈവതേജസ്സ്‌ ഇല്ലാത്തവരായി തീർന്നു .എന്നിട്ട്  തുടർന്ന് നാം വായിക്കുമ്പോൾ അവന്റെ കൃപയാൽ ,ദൈവത്തിന്റെ കൃപയാൽ ഇരുപത്തി നാലാമത്തെ വാക്യം.ക്രിസ്തുവിങ്കലെ വീണ്ടെടുപ്പ് മൂലം സൗജന്യമായി അത്രേ നീതീകരിക്കപ്പെടുന്നത്.ഇത് എല്ലാവരും ഉള്ളിൽ സംഗ്രഹിക്കേണ്ട വാക്യ ഭാഗങ്ങൾ ആണ്‌.അതായത് അവന്റെ കൃപയാൽ, ദൈവത്തിന്റെ കൃപയാൽ ക്രിസ്തുയേശുവിങ്കലെ വീണ്ടെടുപ്പ് മൂലം സൗജന്യമായത്രേ നീതീകരിക്കപ്പെടുന്നത് .കർത്താവായ യേശുക്രിസ്തു മുഖാന്തരം ഉള്ള വീണ്ടെടുപ്പ് നമുക്കേവർക്കും അറിയാം.താൻ ഈ ഭൂമിയിൽ അവതരിച്ച്‌ നമുക്ക് ഒരു ജീവിത മാതൃക കാണിച്ച് നമ്മുടെ പാപങ്ങൾക്ക് വേണ്ടി താൻ ക്രൂശിൽ പാപയാഗമായി തീരുന്നു.തുടർന്നുള്ള വാക്യങ്ങൾ നമ്മൾ വായിക്കുമ്പോൾ ഇരുപത്തിയഞ്ചാം വാക്യം വിശ്വസിക്കുന്നവർക്ക് അതായത് ക്രിസ്തുയേശുവിങ്കലെ വീണ്ടെടുപ്പ്‌ അത് വിശ്വസിക്കുന്നവർക്ക് അവൻ തന്റെ രക്തം മൂലം